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पी.के रोजी का जीवन परिचय
पी.के रोजी का जन्म 1903 में तिरुवंतपुरम के त्रिवेंद्रम में हुआ था। यह मलयालम सिनेमा की पहली महिला लीड एक्टर थी।गरीब परिवार से थी। उनके परिवार माता पिता और उनकी एक बहन थी।उनके परिवार का पालन पोषण किसी तरह चल रहा था। लेकिन उन्हें मुश्किलों का सामना तब करना पड़ा जब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। परिवार की सारी जिम्मेदारियां उनके सर आ गई। बचपन में ही वे काम की तलाश में निकल पड़ी। परिवार का रोजी का मात्र एक ही स्त्रोत था घास काट कर बेचना। 1920-1925 में उनके लावारिस परिवार को उनके चाचा ले गए। उनके बचपन का नाम राजम्मा था। बचपन से ही इनकी रूचि एक्टिंग में दी। उस समय के योग में समाज के कई जातियों ने प्रदर्शन कला में को हतोत्साहित किया। परंतु इस सब की परवाह न करते हुए रोजी ने पहली फिल्म मलयालम विगाथाकुमारम (द लॉस्ट चाइल्ड) में अभिनय किया। इसके चलते उन्होंने कई फिल्मों में काम किया परंतु उन्हें अपने काम के लिए कभी भी पहचान नहीं। परंतु आज भी कई लोग ऐसे हैं जो उन्हें अपनी प्रेरणा का स्त्रोत मानते हैं।
करियर की शुरुआत
रोजी बचपन से ही नाच गाने के बहुत ही शौकीन थी। लेकिन उस दौर में केवल दो तरह के लोग ही डांस सिखाया करते थे ऊंचे दर्जे के या फिर तवांफे।
इसी कारण के चलते उनके इस शौक को घर में ज्यादा पसंद नहीं करते थे। फिर भी इस सबके चलते उनके चाचा ने उनका दाखिला एक डांस अकादमी में करवा दिया। अकादमी में रोजी ने कक्कराशी लोक नृत्य सीखा, जिस नृत्य के माध्यम से शिव पार्वती के धरती पर आने की कहानी को दर्शाया गया था। डांस रिहर्सल से होने दादाजी ने रोका और स्कूल जाने लगी तो समाज ने भी जताया।
लेकिन रोजी को समाज और परिवार की कोई परवाह नहीं थी। कुछ समय बीत जाने के बाद उनकी मां ने चर्च के पादरी से दूसरा विवाह कर लिया और उनके सौतेले पिता ने उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। लेकिन उनकी मां हिंदू धर्म से थी,मां तो दूसरे घर में बस गई। लेकिन रोजी को दादाजी के पास रहना पड़ा और यह वही समय था। जब बड़ी संख्या में दलितों का धर्मांतरण हो रहा था। समाज के बढ़ते दामों के कारण दादाजी ने रोजी को घर से निकाल दिया और मजबूरी के कारण रोजी को ड्रामा कंपनी के साथ रहना पड़ा।
उसी समय मलयालम सिनेमा के पिता के रूप में माने जाने वाले जेसी डैनियल, पहली फीचर फिल्म विगाथाकुमारम बना रहे थे। लेकिन इस फिल्म में कोई भी महिला हीरोइन बनने के लिए तैयार नहीं थी। उन्हें इंडो-एग्लो एक्ट्रेस लाला मिली, जब जेसी डेनियल उनसे मिलने आए उन्होंने ने ₹10000 फीस की मांग की और डेनियल ने उन्हें ₹5000 एडवांस दिए और फर्स्ट क्लास का टिकट देकर उस एक्ट्रेस को मुंबई से तिरुवंतपुरम बुला लिया।
लेकिन खराब सुविधाओं के कारण मिस लाला ने फिल्म छोड़ दी और एडवांस भी नहीं लौटाया।
डेनियल की फाइनेंसियल स्थिति पहले से ही खराब थी। लेकिन अब वो दोनों ही खो खो चुका था हीरोइन और पैसे।
हीरोइन के फिल्म छोड़ देने के बाद जेसी डेनियल अपने दोस्त जॉनसन के कहने पर गांव में नाटक देखने गए और उनके दोस्त एक ऐसी लड़की के बारे में जानते थे जो डेनियल की फिल्म में हीरोइन बन सकती थी। और वह लड़की कोई और नहीं रोजी थी। डेनियल ने उन्हें अपनी फिल्म में हीरोइन तो चुन लिया लेकिन उन्हें उनका नाम पसंद नहीं था।
डेनियल चाहते थे कि उनकी फिल्म की हीरोइन का नाम मॉडर्न होना चाहिए। इसीलिए उन्होंने रोजी का नाम रोजम्मा से बदलकर रोसम्मा पी.के रख दिया।
और इस प्रकार रोजी मलयालम की पहली एक्टर्स बनी। इस फिल्म में उन्होंने सरोजिनी नायडू की भूमिका निभाई थी। जो उच्च जाति की नयार महिला थी। रोजी के फिल्म में उच्च वर्ग का किरदार निभाने से समाज का उच्च वर्ग नाराज था। सैट पर भी रोजी के साथ छुआछूत किया जाता था।
फिल्मी पर्दे पर उनका सफर बहुत विवादों और कठिनाइयों से घिरा रहा। विवादों के बीच 23 अक्टूबर 1928 को तिरुवंतपुरम के कैपिटल सिनेमा हॉल में जेसी डेनियल की फिल्म स्क्रीनिंग हुई।
समाज की नाराजगी के कारण फिल्म के डायरेक्टर ने रोजी को स्क्रीनिंग पर आने से रोक दिया।
उन्होंने डायरेक्टर के कहने को मान लिया लेकिन वो खुद को न रोक सकी क्योंकि वे खुद को एक बड़े पर्दे पर देखना चाहती थी और रोजी अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अपने एक दोस्त के साथ फिल्म देखने पहुंच गई लोगों ने उन्हें देखकर विद्रोह करना शुरू कर दिया और डायरेक्टर ने रोजी को थिएटर से बाहर जाने के लिए कहा।
स्क्रीनिंग पर भीड़ तो बहुत उमड़ी लेकिन हर कोई दलित हीरोइन को देखकर आग बबूला हो रहा था।
फिल्म के एक सीन को देखकर तो लोगों ने हंगामा ही कर दिया सीन कुछ इस प्रकार था अपर कास्ट का हीरो हीरोइन के बालों में लगे फूल को चूम लेता है यह देखकर लोगों ने स्क्रीन पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और थिएटर का पर्दा फाड दिया फिल्म खत्म होने से पहले ही लोग रोजी को मारने के लिए दौड़े। यह देख रोजी अपनी जान बचाकर वहां से भागने लगी। उन्होंने गांव के पास एक पुल के नीचे सारी रात गुजारी और मौका देखते ही पुल से गुजर रहे एक ट्रक ड्राइवर के साथ निकल गए। परंतु ट्रक ड्राइवर भी ऊंची जाति का था। उसका नाम केशव पिल्लई था। केशव रोजी को तमिलनाडु ले गया और वहां जाकर उन दोनों ने विवाह कर लिया।
रोजी और केशव की दो बेटियां हैं जिनका नाम पद्मा और नागप्पन है। गूगल ने इस संघर्षमय अभिनेत्री को इनके 120 वे जन्मदिन पर विशेष डूडल बनाकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
डूडल की शुरुआत कब हुई
डूडल गूगल कंपनी के होम पेज पर एक टूल है। जो हमें अक्सर देश दुनिया में हुई महत्वपूर्ण मुद्दों और महान पुरुषों से अवगत कराता है। इसकी शुरुआत 1998 में हुई थी। जब गूगल के संस्थापक लैरी पेज और सर्जेई ब्रिन बर्निंग मैन फेस्टिवल में जा रहे थे।
वे इस बात को लोगों तक पहुंचाना चाह रहे थे । कि वे दफ्तर से बाहर इस तरह डूडल की शुरुआत हुई। डूडल को नोटिफिकेशन के तौर पर शुरू किया गया था।